Tuesday, September 2, 2008

बिहार : बाढ़ का कहर जारी : मदद की गुहार

बिहार फिर बाढ़ की चपेट में है चारो तरफ हाहाकार मचा है। ऐसी प्रलयंकारी बाढ़ आयी है की लाखो लोग बेघर हो गए है सरकारी सहायता नाकाफी हो रही है मैंने बाढ़ को काफी नज़दीक से देखा है यु कहे की मौत को नज़दीक से देखा है बाढ़ में हमारे सामने हमारे परिजन जिन्दगी की भीख मांगते रहते है और हम उन्हे फिर भी नहीं बचा पाते है आप पत्रकार से यह गुजारिश है की आप यहाँ आये बाढ़ को अपने अपने चैनल या ब्लॉग पर बताये ताकि देश के कोने कोने से मदद मिल सके हमारी थोरी थोरी सहायता बाढ़ पीरितो की बरी मदद कर सकता है एक तिनका भी इनके जीने का सहारा बन सकती है ये मदद के लिए आपको पुकार रहे है आये इनकी मदद करे
संजीत - बेगुसराय

Tuesday, July 29, 2008

सचमुच आप प्रेरणा से कम नही हो सर जी.

अभी भी साइकिल से ही कार्यालय जाते हैं रॉकेट अनुसंधानकर्ता भले ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] में इनका काम राकेट के डिजाइन तैयार करना हो, लेकिन विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के सहायक निदेशक डा. वी. आदिमूर्ति पिछले 20 वर्ष से अपने कार्यालय तक आने-जाने के लिए साइकिल का ही इस्तेमाल करते हैं। दुनिया जिस समय ईधन की भयंकर कमी से जूझ रही है उससे भी काफी पहले आदिमूर्ति ने परिवहन की इस आम और साधारण साधन के फायदों को देखते हुए यह समझदारी भरा निर्णय लिया था। प्रख्यात मलयालम कवि और विद्वान प्रो. विष्णु नारायणन नंबूदरी एक अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं जो साइकिल का उपयोग करते हैं। दोनों ने साइकिल को किफायती पर्यावरण अनुकूल, शारीरिक और मानसिक तौर पर लाभदायक बताया है। आदिमूर्ति और नंबूदिरी उन कुछ लोगों में से हैं जो तेजी से परिवहन के अत्याधुनिक साधनों से कतई प्रभावित नहीं हुए हैं, हालांकि देश में रोज-रोज कई ऊंची कीमतों वाली नई-नई गाडि़यां चलन में आ रही हैं। और तो और उन्हें यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि तिरुअनंतपुरम की ऊंची-नीची और गड्ढे वाली सड़कें उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से सचेत रखती हैं । घर से कार्यालय के बीच रोजाना 20 किलोमीटर साइकिल की सवारी करने वाले आदिमूर्ति ने बताया कि उन्हें इससे कई फायदे हुए। इसका सबसे बड़ा फायदा शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ रहना है। आदिमूर्ति के विचारों को आगे बढ़ाते हुए नंबूदिरी ने कहा कि साइकिल केवल एक कम खर्चीला परिवहन का साधन ही नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह प्रदूषण मुक्त भी है। साइकिल की सवारी कर कोई व्यक्ति न केवल ईधन पर खर्च किए जाने वाली अपनी धनराशि बचा सकता है, बल्कि वह कई तरह से देश को भी फायदा पहुंचाता है। आदिमूर्ति ने बताया कि बेशक मैं अपनी यात्रा के लिए कार्यालय की गाड़ी का इस्तेमाल कर सकता हूं, लेकिन कई सालों तक मैंने यह महसूस किया कि साइकिल चलाना मुझे शारीरिक और मानसिक स्फूर्ति देता है। नंबूदिरी ने अपनी यादों के झरोखों से बताया कि उसने अपने एक मित्र के साथ मिलकर 1965 में एक साइकिल खरीदी थी। हम दोनों के बीच समझौता हुआ कि मैं इसे दिन में और वह रात में इस्तेमाल करेगा। वह ऐसा दौर था जब इसकी बहुत जरूरत थी। कई कविताओं के रचयिता नंबूदिरी ने कहा कि वे प्राय: यह महसूस करते हैं कि साइकिल मनुष्य के शरीर का ही एक विस्तारित अंग है। उन्होंने कहा कि इसके हैंडल हाथों की तरह हैं और पैडल पैरों की तरह उन्होंने साइकिल को एक मध्यस्थ तकनीक के तौर पर देखा है जो भारत जैसे देश के लिए अनुकूल है। उन्होंने उस तस्वीर के बारे में बताया जिसमें महात्मा गांधी को साइकिल से एक बैठक के लिए जाते दिखाया गया है। आदिमूर्ति के मुताबिक विकसित देशों के अकादमिक शहरों और विश्वविद्यालय परिसरों में छोटी यात्रा के लिए साइकिल को सबसे अधिक तवज्जो दी जाती है। आदिमूर्ति और नंबूदिरी उन चार साइकिल चालकों में से हैं जिन्हें पिछले हफ्ते अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस के अवसर पर केरल ओलंपिक एसोसिएशन ने सम्मानित किया था। साभार :-''कुछ हट के '' हिन्दी ब्लॉग

काश देश का हर गाँव ऐसा करता..

अरुण गुप्ता ,दैनिक जागरण से सम्बद्ध हैं। ये ''कुछ हट के'' नम के ब्लॉग के मोडेरेटर भी हैं। अरुण अपने ब्लॉग पर गाँव से जुड़ी बात को शिद्दत से उठाते हैं.उन्होंने एक ऐसे गाँव की चर्चा की है जहाँ के लोगों ने नशा के विरोध में कुछ ऐसे कदम उठाए:-

लोहरदगा के रोनिहा गांव में एक ऐसा निर्णय लिया गया है जो अपने आप में एक मिशाल है। अगर वहां कोई भी शराब पीते पकड़ा गया तो उसे 151 रुपये का जुर्माना भरना होगा। यहां यह सामूहिक निर्णय लिया गया है और इस निर्णय के खिलाफ कोई भी चूं-चपड़ नहीं कर सकता।यह निर्णय उस गांव के खेल की खोई प्रतिष्ठा को वापस लाने के लिए लिया गया जहां अब हो रही नशेबाजी, जिसके कारण वहां खिलाडि़यों की संख्या में कमी हो रही है। शाम होते ही खेल के मैदान में दौड़ लगाने वाले युवाओं ने जब हडि़या-शराब से नाता जोड़ उठक-बैठक और फुटबाल में किक लगाना छोड़ दिया तो गांव के लोग चौंक गए।गांव के लोगों ने इस खोज-पड़ताल शुरू की तो यह सामने आया कि युवा पीढ़ी नशे का शिकार हो रही है। इसको एक गंभीर मामला मानकर गांव के लोगों ने बैठक की और सामूहिक निर्णय में यह तय किया गया कि नशा करते अगर कोई पकड़ा गया तो उसे 151 रुपये का जुर्माना भरना होगा।साथ ही शराब, सिगरेट-बीड़ी और गुटखा पर भी पाबंदी लगा दी गई और जुर्माने में मिली रकम से गांव का विकास किया जाएगा यह निर्णय लिया गया जो एक अच्छा कदम है। युवाओं का रुझान रचनात्मक कार्यो के प्रति घटता जा रहा था सो, यह कदम उठाया गया। किशोरों ने भी इस निर्णय को मानते हुए खुद को नशे से दूर रखने का निर्णय लिया है। कुडू प्रखंड के रोनिहा गांव में पिछले दिनों हुई बैठक में इस आशय का निर्णय लिया गया। पांच साल पहले इस गांव में एक बेहतरीन टीम हुआ करती थी। प्रखंड से जिला तक में इस टीम का जलवा था, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से लड़कों का उत्साह कम होता जा रहा था। इस वर्ष किसी भी ग्रामीण फुटबाल प्रतियोगिताओं के लिए जब गांव में फुटबाल टीम तैयार नहीं हो पायी, तो गांव के पूर्व खिलाडि़यों और बुद्धिजीवियों को इस समस्या की जड़ समझ में आयी।राजकुमार भगत, भरत उरांव, सुनील उरांव, बाबू लाल भगत, बोलो भगत, महेन्द्र उरांव आदि ने ग्रामीणों को एकजुट कर इस मुद्दे पर चर्चा की। इसके बाद सर्वसम्मति से गांव को नशे से दूर रखने का निर्णय लिया गया। आठ सौ की आबादी वाले इस गांव में किया गया यह प्रयास चर्चा में है अगर ऐसा कदम आज के युवा पीढ़ी उठाने लगे तो हो सकता है हम अपने समाज को नशा-मुक्त समाज बना सकते है। लेकिन आज के युवा पीढ़ी नशा को अपना स्टेटस बना रखे है।

Monday, July 28, 2008

गूगल ने किया फ़िर नया धमाका

जी हाँ,ऊपर जो तस्वीर देख रहे हैं ,यह गूगल के इंजिनीअर टीम का नया कमाल है। पहले भी गूगल विश्व की नंबर वन सर्च प्रदाता कम्पनी थी। लेकिन इस बार तकनीक का ऐसा कमाल देखने को मिल रहा है जो अद्भुत है। अब इंटरनेट इउजर वेबपेज सर्च के लिए पहले की तरह ही सर्च करेंगे लेकिन परिणाम अलग हट कर होगा।
एक बार आप भी गूगल के कमाल को देख ले।

Saturday, July 26, 2008

आइए बिहार के इस पत्रकार की हरसंभव मदद करें....

://bhadas.blogspot.com

इस दुनिया में दोस्त तभी तक हैं जब तक आप स्वस्थ, खुशहाल और तरक्की की राह पर हों। जिस दिन आप अकेले हो जाते हैं, किसी भी तरह पीड़ित हो जाते हैं, संघर्ष की स्थिति में होते हैं, परेशान और दुख से भरे होते हैं.....उन दिनों में आपका साया भी आपका पीछा छोड़ जाता है। ये बातें कोई नई नहीं हैं पर हम अक्सर इसे भूल जाते हैं और अपने पद-पैसे के गुरुर में अपनों को भूल जाते हैं। भड़ास हमेशा से ऐसे लोगों के साथ चट्टान की तरह खड़ा हुआ है जो परेशानहाल हैं। करुणाकर की मुहिम अभी भड़ास के मोर्चे का मुख्य एजेंडा बना हुआ है तभी एक और दुख भरी खबर हम लोगों तक पहुंचती है। सुनील कुमार गौतम दैनिक हिंदुस्तान, पटना में डिप्टी न्यूज एडीटर हैं लेकिन वे इस कदर परेशान हैं कि उनकी पीड़ा को संभवतः कोई समझ ही नहीं सकता। एक वरिष्ठ पत्रकार का पिछले चार वर्षों से जीवन सिर्फ अस्पतालों में बीत रहा है। तरह तरह के इलाज करवा रहे हैं। पर फायदा कोई नहीं। सुनील कुमार गौतम चार वर्षों से अल्सरेटिव कोलाइटिस नामक पेट की बीमारी से पीड़ित हैं। वे अब तक बीएचयू मेडिकल कालेज बनारस, एसजीपीजीआई लखनऊ, आईजीआईएमएस और पीएमसीएट पटना के अतिरिक्त कई निजी गैस्ट्रो क्लीनिकों में इलाज करवा चुके हैं। पर उनकी स्थिति सुधर नहीं रही। इस दौरान सुनील जी के उपचार पर लगभग 10 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। अब वे इलाज के लिए एम्स दिल्ली में आ रहे हैं। इलाज कराते कराते सुनील जी का परिवार आर्थिक रूप से टूट चुका है। वे जो कुछ कर रहे हैं सब व्यक्तिगत स्तर पर कर रहे हैं। वे दिल्ली भी खुद के खर्चे पर इलाज कराने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि एम्स में उनका तीन चरणों में आपरेशन होगा जिसमें करीब 5 लाख रुपये खर्च आएंगे। अन्य खर्चे अलग से। सुनील जो को अब सामाजिक, सामुदायिक और सरकारी मदद मिलनी चाहिए। समाज के जाग्रत लोगों और बुद्धीजिवियों से अनुरोध है कि वे एक वरिष्ठ पत्रकार के दुख में शामिल हों और उन्हें स्वस्थ कराने के लिए आगे आएं। जरूरी नहीं कि आप सिर्फ आर्थिक मदद करें तभी मदद कही जाएगी, आप का भावनात्मक सपोर्ट भी एक दुखी को खुशियां प्रदान कर सकता है। जैसा कि हमारे डाक्टर रूपेश ने पिछले दिनों करूणाकर के मामले में कर दिखाया। मुंबई से दिल्ली आकर 48 घंटे तक मरीज के साथ रहकर उन्हें करुणाकर के चेहरे पर वो मुस्कान ला दी जिसे उसका परिवार देखने को कई महीनों से तरस रहा था। फिलहाल मैं खुद यह तय नहीं कर पा रहा हूं कि सुनील जी की मदद हम लोग किस तरह कर सकते हैं। करुणाकर के मामले में आर्थिक मदद की अपील बहुत प्रभावी नहीं रही इसलिए अब आर्थिक मदद की अपील करने से बचना चाह रहा हूं। इस बार मैं सभी भड़ासियों और सभी प्रबुद्ध साथियों पर छोड़ रहा हूं कि वो खुद बतायें कि हम लोग इस मामले में क्या करें। सुनील जी से संपर्क के लिए आप उनसे उनके मोबाइल नंबर 09431080582 पर फोन कर सकते हैं या उनके घर के लैंडलाइन फोन 0612-2578113 पर काल कर सकते हैं। सुनील जी का बैक एकाउंट नंबर भी भड़ास के पास भेजा गया है जो इस प्रकार है - bank account no - 2201050040687 HDFC bank। पटना के एक भड़ास के शुभचिंतक साथी ने सुनील जी के मामले को भड़ास तक पहुंचाया, इसके लिए मैं उनका दिल से आभारी हूं। जिस तरह करूणाकर के इलाज व देखरेख का जिम्मा एक भड़ासी साथी व पत्रकार अमित द्विवेदी ने उठा रखा है, उसी तरह अगर कोई साथी सुनील जी के मामले में आगे आए तो कोई पहल की जा सकती है। फिलहाल तो मैं सुनील जी के दुख में खुद को शामिल कर रहा हूं। हम सब मिलकर सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिए। दिल्ली के पत्रकार यूनियनों, सरकार के मंत्रियों, बुद्धिजीवियों आदि से हम किस तरह संपर्क कर सुनील जी के लिए कुछ कर सकते हैं, इस बारे में आप सभी के विचार आमंत्रित हैं। Posted by यशवंत सिंह yashwant singh Labels: , , , , , 4 comments: ranjan.rajn said... Yashvant ji,Aap ne dard samjha, yah aap ki mahanta hai.Aap jald koi faisla lekar pahal kijiye, ham sath hain. 26/7/08 1:57 AM डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said... दादा,क्या लोग ऐसे मामलों में जरा भी गम्भीर होते हैं कि करुणाकर मिश्र या सुनील जी जैसे लोगों का दर्द समझ सकें....... आर्थिक मदद की अपील का हाल तो हमारे सामने है..... मैं इस विषय में बस इतना कह सकता हूं कि अल्सरेटिव कोलायटिस कोई ऐसी बीमारी नहीं है कि जिसमें इतना समय और धन व्यय हुआ है सिर्फ़ डाक्टरों ने अंधेरे में तीर चला-चला कर रोग बिगाड़ दिया है...... 26/7/08 9:23 AM kashiram said... we should have to take some decision about sunilji. we cannot hold this matter to press unions of delhi. yashwantji you should have to take a initiative, and all of us are with you. i will try to help sunilji as quick as possible. 26/7/08 11:02 AM विशाल शुक्ल said... chota munh par badi baat. main sunil ji ke saath hoon, aadesh karen... 26/7/08 1:47 PM Post a Comment Links to this post

इस गली में बालिका शिक्षा की असली तस्वीर दिखती है...दैनिक जागरण बेगुसराय के रिपोर्टर ने दिखाया सच

  • *बेगुसराय का एक मात्र महादलित और अतिपिछडा वर्ग की पंचायत कुसमहौत की आठ हजार की आबादी में एक भी लड़की मैट्रिक पास नही

  • सदर प्रखंड के एक मात्र महादलित व अतिपिछड़ा वर्ग की पंचायत कुसमहौत में आज भी उच्च शिक्षा की किरण नहीं पहुंची है। पंचायत की करीब आठ हजार की आबादी में एक भी लड़की मैट्रिक पास नहीं है। यहां की लड़कियों के मैट्रिक पास से वंचित रहने का मुख्य कारण उच्च विद्यालय का अभाव बताया जा रहा। यहां से करीब आठ किलोमीटर दूर चांदपुरा में उच्च विद्यालय है जहां जाने-आने की कोई सुविधा नहीं। लड़कियों के मैट्रिक पास न रहने से अच्छे परिवार में रिश्ता तय करने में भी परेशानी आती है। चाहे वह खूबसूरत ही क्यों न हों। बताते चलें कि पंचायत में 1956 में एक प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की गयी थी। जिसमें वर्तमान में 12 शिक्षक व 758 विद्यार्थी है। जिसमें 428 लड़कियां ही नामांकित है। इससे यहां लड़कियों में पढ़ने के प्रति पैदा हुई ललक का अंदाजा लगाया जा सकता है। उच्च विद्यालय के नहीं रहने से लड़कियां मध्य विद्यालय से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाती है। सातवीं कक्षा की छात्रा किरण कुमारी, पूनम कुमारी, माधुरी कुमारी छठे कक्षा की चांदनी कुमारी, काजल कुमारी को गांव में उच्च विद्यालय नहीं रहने का अफसोस है। उनका कहना है कि अभिभावक आवागमन व सुरक्षा कारणों से उन्हे बाहर पढ़ने के लिए नहीं भेज पाते है। पंसस पवन राय भी स्वीकारते हैं इस पंचायत के पिछड़ेपन की मुख्य वजह अशिक्षा है। उन्होंने यह भी बताया कि अभी यहां के लोग 70 प्रतिशत निरक्षर है। पंचायत के महादलित मुखिया उमदा देवी ने का कहना है कि यह पंचायत शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली हर दृष्टि से उपेक्षित है। मुखिया बताती है कि इसी वर्ष 3 फरवरी को जद यू कार्यकर्ता सम्मेलन में स्थानीय सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह से ग्रामीणों ने कस्तुरबा गांधी बालिका उच्च विद्यालय की मांग की गयी थी। उन्होंने इसकी स्वीकृति दिलाने का आश्वासन भी दिया था। लेकिन स्वीकृति नहीं मिली। पंचायत के मुखिया उमदा देवी, पंसस पवन राय एवं समस्त ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कस्तूरबा गांधी बालिका उच्च विद्यालय की स्वीकृति प्रदान करने की मांग की है।

लन्दन के पाँच वर्ष के बच्चे ने झाडू का पेटेंट करवाया

इस लड़के ने ऐसे झाडू का आविष्कार किया है कि सेम हयूस्टन नाम के इस बालक के नाम दुनिया के सबसे छोटे पेटेंट धारी होने का श्रेय गया है। लन्दन का यह बालक अपने पिता और अपने आस पास के लोगों को पारंपरिक तरीके से झाडू लगाते देख ऐसी झाडू कि कल्पना कर उसे साकार कर दिया कि लोग उसके आविष्कार से अचंभित हैं।

Friday, July 25, 2008

बाईस किलोग्राम का टयूमर था महिला के पेट में

बेगूसराय के कारीचक-छपकी गांव निवासी मो. जैनू की पत्‍‌नी मासूमा खातून के पेट से गुरुवार को डा. शैलेन्द्र लाल के क्लीनिक में तीन घंटे के आपरेशन के बाद 22 किलो मांस का लोथड़ा (ट्यूमर) निकाला गया। तो उसे देखने लोगों की भीड़ जमा हो गयी। पीड़ित परिवार के अनुसार, मासूमा खातून पांच साल से बीमार थी। लेकिन उसे यह मालूम नहीं था कि उसके पेट के अंदर मांस का गोला पल रहा है। तीन दिनों पहले वह डा. शैलेन्द्र लाल के क्लीनिक में जांच कराने आयी। डाक्टर ने अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन करवाने को कहा। रिपोर्ट में महिला के पेट में ओवेरियन सिष्ट पाया गया है। डाक्टर लाल द्वारा सफलता पूर्वक किये गये इस आपरेशन की चर्चा पूरे इलाके में व्याप्त है।

स्रोत :-जागरण

Wednesday, July 16, 2008

बेगुसराय के सिविल सर्जन बंधक बनाय गए:सुशासन में देखिये यह तमाशा

मोटी रकम लेकर किये गए स्थानांतरण पदस्थापन को रद करें नहीं तो सीएस साहब आपको यहां के कर्मचारी जेल भेज देंगे। आपके कार्यकाल में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच चुका है। किसी भी मेडिकल सर्टीफिकेट बनाने में दो हजार से पांच हजार रूपए तक लिए जा रहे हैं। यहां तक कि कर्मचारियों के वेतन भुगतान में भी सिविल सर्जन द्वारा राशि मांगे जाने का आरोप बिहार चिकित्सा एवं जन स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के शिष्टमंडल ने सिविल सर्जन डा। मदन लाल अग्रवाल से वार्ता के दौरान प्रकोष्ठ में कही। शिष्टमंडल में कर्मचारी महासंघ के जिला मंत्री शशिकांत राय, स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के जिला मंत्री अरुण कुमार सिंह, अध्यक्ष श्रीमती कृष्णा कुमारी, योगेन्द्र झा, कालीकांत साह सहित अन्य कर्मचारी नेताओं ने अपनी मांगों को ले घंटों सीएस को कार्यालय में बंधक बनाए रखा। इस क्रम में पद धारक कर्मचारियों के स्थानांतरण को रद करते हुए 17 जुलाई तक पत्र निर्गत करने की मांग की। कर्मचारी नेताओं ने सीएस को घेर कर घंटो जलील किया। सीएस और शिष्टमंडल के बीच कई बार हाथापायी की स्थिति बनती रही। शिष्टमंडल के नेता शशिकांत राय ने कहा कि डा. मदन लाल अग्रवाल अब तक सीएस में सर्वाधिक भ्रष्ट हैं। वहां उपस्थित स्वास्थ्य विभाग के सभी कर्मियों ने सीएस द्वारा रात के दस बजे तक कार्यालय चलाने का कड़ा विरोध किया। सीएस अवैध वसूली के लिए देर रात तक कार्यालय में डटे रहते हैं तथा कर्मियों को परेशान करते हैं। जिसका सभी कर्मचारियों ने जमकर विरोध किया। इस मुद्दे पर सिविल सर्जन डा. अग्रवाल ने कर्मचारियों के हो-हंगामा की पुष्टि करते हुए कहा कि नेतागण अनावश्यक रूप से दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं। नेतागिरी के नाम पर कई कर्मचारी अपने पद पर वर्षो से डटे हैं उन्हें ही हटाया गया है। साभार:दैनिक जागरण

Tuesday, July 15, 2008

थैंक्यू नवभारत टाइम्स, मुंबई- करूणाकर के लिए ''भड़ास'' की मुहिम को सराहा

करूणाकर के मामले को और भड़ास के अभियान को अब मुंबई के एक प्रतिष्टित अखबार नवभारत टाइम्स ने कवरेज दी है, जिंदगी और बता, तेरा इरादा क्या है शीर्षक से। अगर आप मुंबई के रहने वाले हैं तो करूणाकर की ख़बर पेज नम्बर पांच पर नवभारत टाइम्स में ज़रूर देंखें। डाक्टर रूपेश जी और रजनीश भाई से अनुरोध है कि इस कवरेज को भड़ास पर डालें ताकि बाकी भाई भड़ासी भी पढ़ सकें। मुंबई में आज प्रकाशित स्टोरी को पढ़कर मुंबई से बहुत से लोग करूणाकर से जुड़ गए हैं। कई लोगों ने करूणाकर के लिए आर्थिक मदद भी दी है।
मुंबई के वार्ष्णेय चेरीटिबल ट्रस्ट के दिनेश वार्ष्णेय ने करूणाकर को 2000 रुपये की मदद की है जो कि सोमवार तक उसके खाते में आ जायेगी। इसके साथ ही नोएडा के सेक्टर 18 में कपड़े का शोरूम चलने वाले अमित गुप्ता ने 500 रुपये, अमर उजाला के सीनियर सब एडिटर गौरव त्यागी ने 1000 हज़ार रुपये और अजय नथानी जी की अगुवाई में उनके स्पोर्ट्स डेस्क ने भी 1000 रुपये देने का वादा किया है। ये सभी लोग ये राशि सोमवार को करूणाकर के खाते में जामा करवा देंगे। भड़ास परिवार इनका हार्दिक आभार व्यक्त करता है।इन लोगों ने करूणाकर की तबीयत के बारे में जानने की इच्छा जताई। मैं इसके लिए माफी चाहता हूँ की करूणाकर की कुशल क्षेम भड़ास पर नहीं दे सका। पर आज मैं आपको सारी जानकारी दे देता हूँ।करूणाकर अब पूरी तरह से स्वस्थ महसूस कर रहा है। उसे भूख लग रही है तथा नींद भी अच्छी आ रही है। डॉक्टर साहब के दवाइयों को नियमित सेवन कर रहा है और उनके बताए परहेज व चिकित्सा विधि का पालन कर रहा है। अभी जब मैंने उसे फोन किया तो नेटवर्क सही नहीं आ रहा था तो करूणाकर फोन लेकर अपनी छत पर लकड़ी की सीढियों के सहारे चढ़ गया, मुझसे बात करने के लिए। वहां जब वो बात कर रहा था तो उसकी सांसें ऊपर नीचे हो रहीं थीं। मैंने उसे खूब डांट लगाई की अब आगे से ऐसा मत करना। डांट खाकर वो सॉरी बोल रहा था पर वो बात करते हुए पूरी तरह से खुश था। वैसे आपको ये बताना ज़रूरी है कि डॉक्टर रूपेश जिस तरह से उसकी मदद कर रहें हैं, वैसा और कोई भी करूणाकर के लिए नहीं कर सकता था क्योंकि पैसा तो हर कोई दे सकता है पर इलाज़ तो एक डॉक्टर ही कर सकता है।
अमित द्विवेदी ,पत्रकार